आरक्षण बिना किसी अवरोध, फायदा किसका
हमारे देश मे
दलितों और आदिवासियों के जीवन स्तर को उपर करने के लिये , उनको समाज के मुख्य धारा मे लाने के लिये आरक्षण के
साथ साथ दर्जनों योजनाये भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा चालु किया गया है।
समाज के अन्तिम छोर के व्यक्ति या समाज को मुख्य धारा मे लाना सभी का कर्तव्य है। इसी
कर्तव्यबोध के कारण आजादी के तुरन्त बाद अनुसुचित जाति और अनुसुचित जनजातीय श्रेणी
मे आने वाले लोगों सरकारी नौकरियों/शिक्षा संस्थानों के आरक्षण की व्यवस्था
संविधान मे ही कर दिया गया। (The primary stated objective of the Indian reservation
system is to increase the
opportunities for enhanced social and educational status of the underprivileged communities and thus enable
them to take their place
in the mainstream of Indian society) इसका जबरदस्त फायदा मिला, आज सरकारी विभागों मे प्रत्येक कैडर मे इनकी संख्या
निर्धारित अनुपात मे है कहीं कहीं तो ज्यादा है। आज आजादी के 67 सालों के बाद समाज मे इस आरक्षण का कितना फलाफल हुआ इसका आकलन
किया ही नही गया। आप यदि इस आरक्षण के लाभ, नामी गिरामी शिक्षण संस्थानो मे लेने बाले कुछ सौ
विद्यार्थियों पर गौर करेंगे तो यह पायेगें कि 70% से 80% छात्र पहले से ही
अभिजात्य वर्ग मे शामिल हो चुके परिवार से आये बच्चे है। इसमे उच्च पदों पर आसीन
शासकीय पदाधिकारियों,/अभियंताओं/प्रोफेसरों और बड़े पद पर आसीन प्राइवेट कम्पनियों
के पदाधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चे होते है। ये जो पदाधिकारी पहले से ही
उच्च पद पर आसीन है, समाज में किसी भी तरह से पिछड़े नही कहलाये जा सकते है, पद और
पैसों से भरपुर, अपने बच्चों को अच्छे नामी गिरामी प्राइवेट विद्यालयों मे पढाते
है, अच्छे से अच्छा कोचिंग देते है, इनके सामने गावों का गरीव परीब का बच्छा कितना भी विलक्षण बुद्धि और अथक
मेहनत करने वाला , प्रतियोगिता परिक्षाओं मे पीछे रह जाता है, इस तरह आरक्षण का
लाभ उसे मिल जाता है, जिसका जीवन स्तर पहले से ही काफी उँचा उठा हुआ होता है। और गावों/शहरों
के दवे कुचले परम्परागत कार्यो मे लिप्त/ दैनिक मजदुरी करने वाले समाज के हासिये पर
ही बने रह जाते हैं और उनका हक, समाज मे पहले ही उच्च पदों पर बैठे अभिजात्य वर्ग
मे शामिल हो चुके लोगों के बच्चे उठा लेते है।
आजादी के बाद
से ही लगभग 23% आरक्षण अनुसुचित जाति और
अनुसुचित जनजातीय श्रेणी के लोगों को मिलता आ रहा है। लगभग प्रत्येक सरकारी
विभागों, सरकारी अर्द्ध सरकारी फैक्टरियों मे लगभग प्र्त्येक कैडर मे 23% लोग इस
श्रेणी से आते है। आई ए एस, आइ पी एस, आदि के नियुक्ति मे भी आरक्षण का यह प्रतिशत
शक्ति से लागु होता है।
अब प्रश्न उठता
है कि कोई व्यक्ति जब आइ ए एस बन गया, जिलाधिकारी बन गया, विभागीय सचिव बन गया तो
वह पिछड़ा कैसे रहा। और यदि वह पिछड़ा नही रहा/ अस्पृश्य नही रहा, उनके बच्चों को
आरक्षण का लाभ क्यों मिलना चाहिये। क्या एक सचिव स्तर के पदाधिकारी, जिनका सामाजिक
स्तर बहुत ही ऊँचा होता है, उनके बच्चे को आरक्षण का लाभ मिलना, किसी झोपड़ी मे
रहने वाले वास्तविक दलित के बच्चे के अधिकार का हक मारना नही हुआ।
यदि इसी तरह
आरक्षण का लाभ, सामाजिक, आर्थिक,
राजनैतिक, सरकारी स्तर पर पहले से ही काफी बिकसित हो चुके लोग उठाते रहेगें
तो जिस विशेष उद्देश्य को लेकर आरक्षण की व्यवस्था महामना भीम राव अम्बेडकर ने
शुरु किया था वह उद्देश्य हमेशा अधुरा ही रहेगा। इसे एक निम्न उदाहरण से समझा जा
सकता है।
रमेश और आशुतोष दोनो दलित जाति से आते है, रमेश एक
अत्यंत गरीब परिवार से आता है, जिसके माता पिता अपने पुस्तैनी धंधे मे लगे है और
किसी तरह अपने बेटे रमेश को सरकारी विद्यालय मे पढा रहे हैं, रमेश एक उच्च महात्वाकांक्षी
मेधावी छात्र है, उसके सपने भी आइ आइ टी जैसे संस्थान मे पढने का है, गरीब माता
पिता उसे अपने पूरी क्षमता का उपयोग उसे
अच्छी शिक्षा देने मे कर रहे हैं, गांव मे लालटेन की रोशनी मे रात के चार चार घंटे
रोज पढता देख उसके पिता भी खुश होते। दसवीं तो वह प्रथम श्रेणी मे पास हो गया। रमेश
तो खुश था ही उसके मम्मी पापा तो फुले नहीं समा रहे थे। पर अब रमेश चिंतित भी था,
अब उसे कालेज जाना जो कि उसके गांव से 30 किलोमीटर दूर है, वहां कैसे रहेगा कालेज
का फीस/महगी किताबें और तो और अच्छी कोचिंग कैसे कर सकेगा। शहर के ही एक
प्रतिष्ठित विद्यालय (10+2) मे प्रवेश मिल गया, सरकार से उसे स्कालरशीप भी मिल
गया, अनुसुचित जाति और उसकी आर्थिक स्थिति के कारण स्कूल फीस माफ कर दिया गया।
कालेज के बगल मे ही एक कमरा लेकर रहने लगा। अच्छे दोस्त बने जिनके सौजन्य से उसे
एक-दो ट्युसन मिल गया जिसके कारण उसका अपना खर्च निकल जाने लगा। रमेश जी जान लगा
कर मेहनत करने लगा।
उसी विद्यालय
मे एक विद्यार्थी आशुतोश पढ रहा था जो उसी की जाति से आता है।
आशुतोस के पिता एक बहुत बड़े सरकारी अधिकारी है। रमेश के पास एक ही विषय की कई कई
पुस्तकें थी। वह प्रत्येक विषय मे प्रतिष्टित कोचिग़ सस्थानों से कोचिग ले रहा था।
ये कोचिंग संस्थान मे काफी अच्छे और अनुभवी शिक्षक रहते है और IIT एवं NIT के प्रवेश परिक्षाओं के विशेषज्ञ होते हैं।
अब बतायें देश
के अति प्रतिष्टित संस्थानों की प्रवेश परिक्षाओं मे किसके प्रवेश की ज्यादा
संभावना है आशुतोष का या रमेश का। वही हुआ
रमेश से कुछ ज्यादा अंक आशुतोष को मिले और उसका अनुसुचित जाति के कोटे से हो गया।
यहाँ प्रश्न यह उठता है कि आरक्षित सीट पर पहला अधिकार किसका है, रमेश जैसे
विद्यार्थी जो समाज के वास्त्विक दलित का प्रतिनिधित्व करता है या आशुतोष जैसे
विद्यार्थी जो कि भाग्यवश आते है उसी जाति से, पर समाज मे उसका रुतवा या स्तिथि
किसी भी कुलीन समाज से भी उपर है, जिनके पिता लाखो का वेतन पाते हैं, बड़े आलीसान
बगले मे रहते हैं, अपने पुत्र को किसी भी प्राइवेट संस्थान मे भारी भरकम डोनेसन
देकर भी पढाने की क्षमता रखते हैं को आरक्षण का लाभ, वास्तविक हकदार के अधिकारों
पर डाका डलने जैसा नही है?
लगभग सभी
सरकारी विभागों/संस्थानो मे आरक्षण के सरकारी अनुपात मे अधिकारी और कर्मचारी काम
कर रहे हैं, लोक सेवा आयोग/ राज्य सेवा आयोग /सेना मे कमीसन आदि के द्वारा जो अधिकारी बनते हैं उनका सामाजिक
स्तर तो स्वत: उपर उठ जाता है, आर्थिक और सामाजिक
दोनो स्तरों पर आम समाज से काफी उपर उठ जाते हैं। अब इनके बच्चे जिन्हे
बचपन से ही संपन्न जीवन जीने की आदत होती है, अच्छे से अच्छे प्राइवेट विद्यालयों
मे पढते हैं, अच्छी से अच्छी ट्युसन/कोचिंग लेते है, को आरक्षण का लाभ मिलना
चाहिये या समाज के वैसे मेधावी छात्रों को जो वास्तविक दलित का प्रतिनिधत्व करते
है, दिन रात मेहनत कर पढते हैं पर जिनके आर्थिक स्तिथि की अधिकतम सीमा स्थानीय सरकारी विद्यालय होता है,
आधी कीमत पर खरीदी गई पुरानी किताबें होती है, फटे पुराने कपड़े होते हैं , को
मिलना चाहिये। आज की स्थिति मे अनुसुचित जाति और अनुसुचित जनजाति के आरक्षण का
अधिकतम लाभ इन्ही पहले से ही काफी उपर उठ चुके इन पदाधिकारियों के परिवार उठा रहे
हैं। इस तरह तो आने बाले सौ सालों मे भी आरक्षण का असल मकसद पुरा नहीं होगा।
आरक्षण का उद्देश्य तो वर्षों से उपेक्षित
और हासिये पर खड़ी जमात को मुख्य धारा मे लाना है, उन्हे समाज मे सम्मान दिलाना है।
जब कोई व्यक्ति विधायक/सांसद/ प्रथम/द्वितीय श्रेणी का राजपत्रित अधिकारी बन जाता है तो स्वाभाविक
रुप से उसका सामाजिक स्तर काफी उपर उठ जाता है। वह सम्मानीय और आदरणीय बन जाता है
तो उसके बच्चों को आरक्षण का लाभ क्यों मिलना चाहिये। इससे समाज मे उनके प्रति
विद्रोह और गुस्सा पैदा होता है। पर जब किसी उचित व्यक्ति को आरक्षण का लाभ मिलता
है तो इस सिस्टम के प्रति सम्मान और ईमानदारी का भाव पैदा होता है।
क्या इस बात की
समीक्षा नहीं होनी चाहिये की आरक्षण का वास्तविक लाभ कौन लोग उठा रहे है? प्रति
वर्ष IIT/NIT/IIM/Medical /State
Engg & Medical colleges के प्रवेश परिक्षाओ मे
सफल अनुसुचित जाति/जनजाति के विद्यार्थियों मे उच्च वर्ग (बडे पदाधिकारियों/उच्च
पदस्त प्राइवेट सस्थानों के प्रबंधकों/मंत्रियो/भुतपूर्व मंत्रियों/ससंद सदस्यों
आदि) मे आने बाले व्यक्तियों के बच्चे और
अत्यंत गरीवी मे जी रहे, समाज मे दबे और उपेक्षित दलितो के बच्चे का वास्तविक
अनुपात क्या है, इसकी नियमित रुप से समीक्षा होनी चाहिये।
संबिधान मे
आरक्षण कि व्यवस्था का समाबेश हुए 64 साल गुजर गये पर अब भी समाज मे हरिजनो और
आदिवासियों का बहुमत समाज के मुख्य धारा मे शामिउल नही हो सका है तो इसका मुख्य
कारण इस आरक्षण के लाभ का अधिकतम भाग समाज के मुट्ठी भर वैसे लोग उठा रहे हैं जो
पहले से ही मुख्य धारा से काफी उपर उठ चुके है।