Wednesday, May 28, 2014




आरक्षण बिना किसी अवरोध, फायदा किसका

हमारे देश मे दलितों और आदिवासियों के जीवन स्तर को उपर करने के लिये , उनको  समाज के मुख्य धारा मे लाने के लिये आरक्षण के साथ साथ दर्जनों योजनाये भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा चालु किया गया है। समाज के अन्तिम छोर के व्यक्ति या समाज को मुख्य धारा मे लाना सभी का कर्तव्य है। इसी कर्तव्यबोध के कारण आजादी के तुरन्त बाद अनुसुचित जाति और अनुसुचित जनजातीय श्रेणी मे आने वाले लोगों सरकारी नौकरियों/शिक्षा संस्थानों के आरक्षण की व्यवस्था संविधान मे ही कर दिया गया। (The primary stated objective of the Indian reservation system is to increase the opportunities for enhanced social and educational status of the underprivileged communities and thus enable them to take their place in the mainstream of Indian society) इसका जबरदस्त फायदा मिला, आज सरकारी विभागों मे प्रत्येक कैडर मे इनकी संख्या निर्धारित अनुपात मे है कहीं कहीं तो ज्यादा है। आज आजादी के 67 सालों के बाद समाज मे इस आरक्षण का कितना फलाफल हुआ इसका आकलन किया ही नही गया। आप यदि इस आरक्षण के लाभ, नामी गिरामी  शिक्षण संस्थानो मे लेने बाले कुछ सौ विद्यार्थियों पर गौर करेंगे तो यह पायेगें कि 70% से 80% छात्र पहले से ही अभिजात्य वर्ग मे शामिल हो चुके परिवार से आये बच्चे है। इसमे उच्च पदों पर आसीन शासकीय पदाधिकारियों,/अभियंताओं/प्रोफेसरों और बड़े पद पर आसीन प्राइवेट कम्पनियों के पदाधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चे होते है। ये जो पदाधिकारी पहले से ही उच्च पद पर आसीन है, समाज में किसी भी तरह से पिछड़े नही कहलाये जा सकते है, पद और पैसों से भरपुर, अपने बच्चों को अच्छे नामी गिरामी प्राइवेट विद्यालयों मे पढाते है, अच्छे से अच्छा कोचिंग देते है, इनके सामने गावों का गरीव  परीब का बच्छा कितना भी विलक्षण बुद्धि और अथक मेहनत करने वाला , प्रतियोगिता परिक्षाओं मे पीछे रह जाता है, इस तरह आरक्षण का लाभ उसे मिल जाता है, जिसका जीवन स्तर पहले से ही काफी उँचा उठा हुआ होता है। और गावों/शहरों के दवे कुचले परम्परागत कार्यो मे लिप्त/ दैनिक मजदुरी करने वाले समाज के हासिये पर ही बने रह जाते हैं और उनका हक, समाज मे पहले ही उच्च पदों पर बैठे अभिजात्य वर्ग मे शामिल हो चुके लोगों के बच्चे उठा लेते है।
आजादी के बाद से ही लगभग 23% आरक्षण  अनुसुचित जाति और अनुसुचित जनजातीय श्रेणी के लोगों को मिलता आ रहा है। लगभग प्रत्येक सरकारी विभागों, सरकारी अर्द्ध सरकारी फैक्टरियों मे लगभग प्र्त्येक कैडर मे 23% लोग इस श्रेणी से आते है। आई ए एस, आइ पी एस, आदि के नियुक्ति मे भी आरक्षण का यह प्रतिशत शक्ति से लागु होता है।
अब प्रश्न उठता है कि कोई व्यक्ति जब आइ ए एस बन गया, जिलाधिकारी बन गया, विभागीय सचिव बन गया तो वह पिछड़ा कैसे रहा। और यदि वह पिछड़ा नही रहा/ अस्पृश्य नही रहा, उनके बच्चों को आरक्षण का लाभ क्यों मिलना चाहिये। क्या एक सचिव स्तर के पदाधिकारी, जिनका सामाजिक स्तर बहुत ही ऊँचा होता है, उनके बच्चे को आरक्षण का लाभ मिलना, किसी झोपड़ी मे रहने वाले वास्तविक दलित के बच्चे के अधिकार का हक मारना नही हुआ।
यदि इसी तरह आरक्षण का लाभ, सामाजिक, आर्थिक,  राजनैतिक, सरकारी स्तर पर पहले से ही काफी बिकसित हो चुके लोग उठाते रहेगें तो जिस विशेष उद्देश्य को लेकर आरक्षण की व्यवस्था महामना भीम राव अम्बेडकर ने शुरु किया था वह उद्देश्य हमेशा अधुरा ही रहेगा। इसे एक निम्न उदाहरण से समझा जा सकता है।
रमेश  और आशुतोष दोनो दलित जाति से आते है, रमेश एक अत्यंत गरीब परिवार से आता है, जिसके माता पिता अपने पुस्तैनी धंधे मे लगे है और किसी तरह अपने बेटे रमेश को सरकारी विद्यालय मे पढा रहे हैं, रमेश एक उच्च महात्वाकांक्षी मेधावी छात्र है, उसके सपने भी आइ आइ टी जैसे संस्थान मे पढने का है, गरीब माता पिता उसे अपने पूरी  क्षमता का उपयोग उसे अच्छी शिक्षा देने मे कर रहे हैं, गांव मे लालटेन की रोशनी मे रात के चार चार घंटे रोज पढता देख उसके पिता भी खुश होते। दसवीं तो वह प्रथम श्रेणी मे पास हो गया। रमेश तो खुश था ही उसके मम्मी पापा तो फुले नहीं समा रहे थे। पर अब रमेश चिंतित भी था, अब उसे कालेज जाना जो कि उसके गांव से 30 किलोमीटर दूर है, वहां कैसे रहेगा कालेज का फीस/महगी किताबें और तो और अच्छी कोचिंग कैसे कर सकेगा। शहर के ही एक प्रतिष्ठित विद्यालय (10+2) मे प्रवेश मिल गया, सरकार से उसे स्कालरशीप भी मिल गया, अनुसुचित जाति और उसकी आर्थिक स्थिति के कारण स्कूल फीस माफ कर दिया गया। कालेज के बगल मे ही एक कमरा लेकर रहने लगा। अच्छे दोस्त बने जिनके सौजन्य से उसे एक-दो ट्युसन मिल गया जिसके कारण उसका अपना खर्च निकल जाने लगा। रमेश जी जान लगा कर मेहनत करने लगा।
उसी विद्यालय मे एक  विद्यार्थी  आशुतोश पढ रहा था जो उसी की जाति से आता है। आशुतोस के पिता एक बहुत बड़े सरकारी अधिकारी है। रमेश के पास एक ही विषय की कई कई पुस्तकें थी। वह प्रत्येक विषय मे प्रतिष्टित कोचिग़ सस्थानों से कोचिग ले रहा था। ये कोचिंग संस्थान मे काफी अच्छे और अनुभवी शिक्षक रहते है  और  IIT  एवं  NIT  के प्रवेश परिक्षाओं के विशेषज्ञ होते हैं।
अब बतायें देश के अति प्रतिष्टित संस्थानों की प्रवेश परिक्षाओं मे किसके प्रवेश की ज्यादा संभावना है  आशुतोष का या रमेश का। वही हुआ रमेश से कुछ ज्यादा अंक आशुतोष को मिले और उसका अनुसुचित जाति के कोटे से हो गया। यहाँ प्रश्न यह उठता है कि आरक्षित सीट पर पहला अधिकार किसका है, रमेश जैसे विद्यार्थी जो समाज के वास्त्विक दलित का प्रतिनिधित्व करता है या आशुतोष जैसे विद्यार्थी जो कि भाग्यवश आते है उसी जाति से, पर समाज मे उसका रुतवा या स्तिथि किसी भी कुलीन समाज से भी उपर है, जिनके पिता लाखो का वेतन पाते हैं, बड़े आलीसान बगले मे रहते हैं, अपने पुत्र को किसी भी प्राइवेट संस्थान मे भारी भरकम डोनेसन देकर भी पढाने की क्षमता रखते हैं को आरक्षण का लाभ, वास्तविक हकदार के अधिकारों पर डाका डलने जैसा नही है?
लगभग सभी सरकारी विभागों/संस्थानो मे आरक्षण के सरकारी अनुपात मे अधिकारी और कर्मचारी काम कर रहे हैं, लोक सेवा आयोग/ राज्य सेवा आयोग /सेना मे कमीसन  आदि के द्वारा जो अधिकारी बनते हैं उनका सामाजिक स्तर तो स्वत: उपर उठ जाता है, आर्थिक और सामाजिक  दोनो स्तरों पर आम समाज से काफी उपर उठ जाते हैं। अब इनके बच्चे जिन्हे बचपन से ही संपन्न जीवन जीने की आदत होती है, अच्छे से अच्छे प्राइवेट विद्यालयों मे पढते हैं, अच्छी से अच्छी ट्युसन/कोचिंग लेते है, को आरक्षण का लाभ मिलना चाहिये या समाज के वैसे मेधावी छात्रों को जो वास्तविक दलित का प्रतिनिधत्व करते है, दिन रात मेहनत कर पढते हैं पर जिनके आर्थिक स्तिथि की  अधिकतम सीमा स्थानीय सरकारी विद्यालय होता है, आधी कीमत पर खरीदी गई पुरानी किताबें होती है, फटे पुराने कपड़े होते हैं , को मिलना चाहिये। आज की स्थिति मे अनुसुचित जाति और अनुसुचित जनजाति के आरक्षण का अधिकतम लाभ इन्ही पहले से ही काफी उपर उठ चुके इन पदाधिकारियों के परिवार उठा रहे हैं। इस तरह तो आने बाले सौ सालों मे भी आरक्षण का असल मकसद पुरा नहीं होगा। आरक्षण का उद्देश्य तो  वर्षों से उपेक्षित और हासिये पर खड़ी जमात को मुख्य धारा मे लाना है, उन्हे समाज मे सम्मान दिलाना है। जब कोई व्यक्ति विधायक/सांसद/ प्रथम/द्वितीय श्रेणी  का राजपत्रित अधिकारी बन जाता है तो स्वाभाविक रुप से उसका सामाजिक स्तर काफी उपर उठ जाता है। वह सम्मानीय और आदरणीय बन जाता है तो उसके बच्चों को आरक्षण का लाभ क्यों मिलना चाहिये। इससे समाज मे उनके प्रति विद्रोह और गुस्सा पैदा होता है। पर जब किसी उचित व्यक्ति को आरक्षण का लाभ मिलता है तो इस सिस्टम के प्रति सम्मान और ईमानदारी का भाव पैदा होता है।
क्या इस बात की समीक्षा नहीं होनी चाहिये की आरक्षण का वास्तविक लाभ कौन लोग उठा रहे है? प्रति वर्ष IIT/NIT/IIM/Medical /State Engg & Medical colleges के प्रवेश परिक्षाओ मे सफल अनुसुचित जाति/जनजाति के विद्यार्थियों मे उच्च वर्ग (बडे पदाधिकारियों/उच्च पदस्त प्राइवेट सस्थानों के प्रबंधकों/मंत्रियो/भुतपूर्व मंत्रियों/ससंद सदस्यों आदि) मे आने बाले व्यक्तियों के बच्चे  और अत्यंत गरीवी मे जी रहे, समाज मे दबे और उपेक्षित दलितो के बच्चे का वास्तविक अनुपात क्या है, इसकी नियमित रुप से समीक्षा होनी चाहिये।  
संबिधान मे आरक्षण कि व्यवस्था का समाबेश हुए 64 साल गुजर गये पर अब भी समाज मे हरिजनो और आदिवासियों का बहुमत समाज के मुख्य धारा मे शामिउल नही हो सका है तो इसका मुख्य कारण इस आरक्षण के लाभ का अधिकतम भाग समाज के मुट्ठी भर वैसे लोग उठा रहे हैं जो पहले से ही मुख्य धारा से काफी उपर उठ चुके है।    

Thursday, December 5, 2013

क्रिकेट मेरी राय में।

क्रिकेट मेरी राय में।

क्रिकेट जो कि इस्ट इन्डिया कम्पनी के द्वारा भारत मे लायागया था। इस खेल को अंग्रेज आफिसर अपने कालोनियों मे खेल कर मन बहलाया करते थे। आखिर 5-5 दिन तक चलने वाला खेल कोई साधारण भारतीय कैसे खेल सकता था, उनका तो शुबह से शाम तक हाड़ तोड़ मिहनत करने पर दो जुन की रोटी नसीब होती थी। भारतीयों मे प्राररभ से ही कबड्डी/कुस्ती/मलखंभ/घुड़सवारी/फुटबाल आदि खेल जन जन मे लोकप्रिय था।  क्रिकेट का प्रचार प्रसार भी उन्ही देशों मे ज्यादा हुआ जहाँ अंग्रेजो की कालोनिया बसी थी या जो देश  ब्रिटिस शासन के अन्दर रहा।  ब्रिटेन मे यूँ तो प्रारंभ से ही फुट्बाल ज्यादा लोकप्रिय खेल रहा जो कि अधिक दम खम और उत्साह बाला खेल है पर संभ्रांत कहे जाने बाले अंग्रेज जो कि विशेषकर प्रशासनिक पदो पर थे मे क्रिकेट ज्यादा था। धीरे धीरे संभ्रांत भारतीय और भारत के बड़े शहरों मे इसका प्रसार हुआ  और यह भद्रजनों का खेल कहा जाने लगा। चूंकि यह एक साफ सुथरा और अपेक्षाकृत कम दमखम बाला खेल है इसका प्रसार बहुत तेजी से बडे शहरों मे हुआ।
आजादी के बाद इसके प्रचार और प्रसार मे सबसे ज्यादा योगदान रेडियो या आकाशवाणी का रहा। टेस्ट मैच का आखों देखा हाल, कमेन्टरी का था। 70-80 के दशक मे सुदुर गाँवों  मे भी लोग गले मे रेडियो लटकाये खेत खलिहानों काम करते हुए क्रिकेट कमेन्टरी सुनते दिखायी पड़ जाते थे। चौपालों मे अक्सर एक रेडियों के चारो ओर घेरकर  बच्चे के साथ साथ बड़े बुढे भी चाव से क्रिकेट कमेन्टरी सुने देखे जाते थे। लोग क्रिकेट के बारे मे ज्यादा तो नहीं जानते थे पर लगने बाले प्रत्येक चौको और छक्के पर जोर की तालियाँ बजती थी। कमेन्टरी का अंदाज इतना रोमांचक होता था कि लोग अन्य आवश्यक कामो को भी उस दौरान नजर अंदाज करने लगे। टी वी तो उनदिनों थी नहीं, धीरे धीरे इस कमेन्टरी की दीवानगी इतनी बढ गयी कि किकेट के टेस्ट मैच के पाँच दिन लोग दिन दिन भर रेडियो से चिपके रहते थे। कालेजों मे क्लासे खाली रहने लगी, सरकारी कार्यालयों मे तो और भी बुरा हाल रहता था, काम धंधे को दरकिनार कर सिर्फ चौको और छक्कों की बात होने लगी।
इसका असर बहुत व्यापक हुआ जहाँ पहले गाँवों मे कबड्डी , कुस्ती बहुत आम था, जहाँ दस लड़के जमा हुये कबड्डी शुरु हो जाटी थी, अक्सर गाँवों के बीच कबड्डी, कुश्ती और फुटवाल का मैच होते रहते थे धीरे धीरे कम होने लगे।
फिर आया क्रिकेट का एक दिवशीय टुर्नामेंट का दौर, क्रिकेट की दीवानगी बढती गयी।गावों से अन्य खेल तो लगभग मृतप्राय हो गये। अब तो पुराने जमाने के खेल यथा खो-खो, आस पास, छुप छुपैया, बुढिया कबड्डी , कबड्डी, तो लगभग पूरी तरह से गायब से हो गये। क्रिकेट की लोकप्रियता को उद्योग पतियों ने भुनाना शुरु कर दिया, क्रिकेट खिलाड़ी, खिलाड़ी से स्टार बन गये, विज्ञापनों के द्वारा उनके उपर पैसों की बरसात होने लगी। देखते देखते क्रिकेट खिलाड़ी लाखपति और लाखपति से करोड़पति होते गये। टी वी पर खेल चैनलों का 95% भाग सिर्फ क्रिकेट को समर्पित हो गये। और तो और सिर्फ क्रिकेट के लिये अलग से कई खेल चैनेल बन गये। हमारे देश के सत्तासीनों पर भी क्रिकेट ही छाया रहने लगा।
इसका अन्य खेलों पर इसका बहुत व्यापक असर हुआ। माता पिता भी अब अपने बच्चों को सिर्फ क्रिकेट खेलने को प्रेरित करने लगे। एथलेटिक्स, फुटवाल, हाकी, कबड्डी, खो-खो खेलने बाले पिछड़े और बैकवर्ड कहलाने लगे। कुछ विद्यालयों तक ही सिमित रह गये। अन्य खेलो के पदक विजेताओं की कोई विशेष पूछ न रह गयी। अक्सर सुनने और अखबारों मे खबरें मे पढने को मिलती है कि फलां अन्तरराष्ट्रीय पदक विजेता रिक्सा चलाते हुये, चाय बेचते हुये, गरीबी के कारण पदक बेचते हुये दिखाई दिये।
120 करोड़ का देश आज सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट जैसे संभ्रांत लोगो के खेल मय हो गया है। गांव शहरों के गली कुचों मे निकल जाइये बच्चे सिर्फ क्रिकेट खेलते नजर आते है। 
               LONG LIVE CRICKET.
अब आइये इस क्रिकेट के अन्य पहलु को भी देखें, आज क्रिकेट कौन कौन देश खेलते है, आस्ट्रेलिया, न्युजीलैंड, वेस्ट इन्डीज, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांगलादेश, दक्षिण अफ्रिका और स्वंय इस खेल का जनक इंगलैंड। इंगलैंड को छोड़कर अन्य सभी देश कभी ना कभी ब्रिटेन के अधिन रह चुके है। यानी यह खेल हमे अंग्रेजों के द्वारा दिया गया नायाव तोहफा है। शायद अंग्रेज भी यह नही सोचे होंगे कि उनका दिया गया तोहफा इतना लोकप्रिय होगा कि लोग अपना सब काम धंधा को बंद कर टी वी, रेडियो, इन्टर्नेट मे ओनलाइन स्कोर से चिपक जायेगें और अपने दादा परदादा के जमाने से खेलते आ रहे खेल को स्वंय अपने हाथों से दफन कर गौरवान्वित महशुश करेगें। आज यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आम भारतीय क्रिकेट का एडिक्ट सा हो गया है।
इंगलैंड को छोड़कर क्रिकेट खेलने बाले  लगभग सभी देश विकासशील देश की श्रेणी मे आते है. और कभी भी विकसित देश के कतार मे खड़ा नही हो पायेगें। कोई भी विकसित देश यथा  अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, रुस, इटली, स्वीटजर्लैंड, और तो और चीन भी क्रिकेट नही खेलता।
किसी भी महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय खेल टुर्नामेंट यथा ओलम्पिक, एसियन गेम्स, और तो और राष्ट्रमंडल खेलों  (जो कभी अंग्रेजों के गुलाम रहे देशों के बीच खेला जाता है) मे भी क्रिकेट शामिल नही है, यह इस खेल की महानता को प्रदर्शित करता है। आखिर संभ्रांत लोगों का खेल आम लोगो के खेल मे शामिल कैसे हो सकता है। आज क्रिकेट करोड़पति, अरबपति खिलाड़ियों का खेल है, यह अन्य खेलों के महोत्सव मे कैसे शामिल हो सकता है और  वे अन्य खेल के  कंगाल (अपेक्षाकृत) खिलाड़ियों के साथ कैसे रह सकते है। क्रिकेट खिलाड़ियो  को 7 स्टार की सुविधाये मिलती है, एक चौका या छक्का  मारने पर करोड़ रुपये तक आसानी से मिल जाता है जबकि अन्तरराष्ट्रीय एथलेटिक्स पदक विजेता को महज कुछ लाख। किसी 5वीं कक्षा के छात्र को पूछ लें वह कम से कम 10-20 भारतीय और विदेशी खिलाड़ियो का नाम आसानी से बता देगें उनके फोटो पहचान लेगें पर एक भी ओलम्पिक पदक विजेता/ एशियन गेम्स विजेता का नाम शायद सौ छात्र मो कोई एक बता पायेगा। हमारा टीवी भी उन वेवकुफ (महान) खिलाड़ी का एकाध बार न्युज दिखाकर अपने कर्तव्य की ईतिश्री कर लेता है।
120 करोड़ आबादी का हमारा भारत, ओलम्पिक मे एक अदद रजत पद के लिये ललायित रहता है। आइये देखें क्रिकेट खेलने वाले देशों मे अन्य खेलों के प्रति क्या रुझान है। क्रिकेट के जन्म दाता देश मे क्रिकेट से ज्यादा फुटवाल लोकप्रिय है, फुट्वाल मैचों के घरेलु और क्लबो के बीच प्रतिस्पर्द्धाओं मे मैदान खचाखच भरा रहता है।लोगों मे वैसा ही जुनुन दिखाई देता ह।, जैसा भारत मे क्रिकेट मैच के दौरान देखने को मिलता है। 2012 लंदन ओलम्पिक के पदक तालिका को देखे क्रिकेट खेलनेवाले देश इंगलैंड- 29 स्वर्ण, 17 रजत 19 ताम्र कुल 65 पदक, आस्ट्रेलिया 7 स्वर्ण, 16रजत जतयग ताम्र, न्युजीलैंड 06 स्वर्ण, 2 रजत 5 ताम्र कुल 13 पदक और भारत को 0स्वर्ण, 02 रजत 4 ताम्र यानी ब्रिटेन आस्ट्रेलिया न्युजीलैंड, आदि देश क्रिकेट सेज्यादा प्रोत्साहन  अन्य खेलों के प्रसार और प्रचार मे दिया। ईन देशों  मे क्रिकेट के साथ ही अन्य खेलों पर भी पूरा ध्यान दिया जाता है वरन अन्य खेलों के खिलाड़ियों को ज्यादा मान सम्मान मिलता है। पिछले कुछ ओलम्पिक के पदक तालिका को देखें तो शीर्ष मे बैठे देशों मे क्रिकेट खेलने वाला सिर्फ इंगलैंड ही है।

कभी हाकी मे लगातार तीन ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण जीतने वाला भारत, पिछले कई बार से ओलम्पिक के लिये क्वालिफाई भी नही कर पा रहा है। हाकी का जादुगर मेजर ध्यानचंद जिसने हिटलर को भी अपने खेल से मंत्रमुग्ध कर दिया था, सभी देशों को धुल चटा देने वाला हाकी का इस जादुगर के कारण भारत को विश्व मे एक  सम्मान मिला था। पर वह सम्मान जो अमेरिका, जर्मनी, ईटली, फ्रांस, रुस, चीन आदि देशों को धुल चटा कर वह भी लगातार तीन ओलम्पिक खेलों मे, भारत को दिलायी थी, शायद आज के दौर के लिये नाकाफी था तभी तो वह महान जादुगर भारत रत्न के काबिल नही समझा गया। यदि ध्यानचंद जैसे महान खिलाड़ी को उचित सम्मान नही मिला तो कोई पागल ही होगा जो क्रिकेट छोड़ कर कोई अन्य खेल, खेल कर अपनी उर्जा, समय और आरंभिक पैसा बर्बाद करेगा।

भारत को अन्तरराष्ट्रीय दवाव बनाकर क्रिकेट को ओलम्पिक आदि खेल प्रतिस्पर्धाओं मे शामिल करने का दवाव बनाना चाहिये। या किकेट को महिमामंडन छोड़कर फुट्वाल, हाकी, /कुश्ती/ एथलेटिक्स खिलाड़ियों की दुर्दशा/कठिनाईयों/आर्थिक कठिनाइयों की ओर ध्यान देना चाहिये  ताकि 120 करोड़ का देश सिर्फ क्रिकेट और घोटालो के लिये ना जाना जाये। हमारे देश मे होनहारों और प्रतिभा की कमी नही है सिर्फ तराशने का खर्च सरकार को उठाना है।  

Tuesday, December 3, 2013

मेरी एक रोमांचक मोटरसाइकिल यात्रा।

आज बैठे बैठे एक सच्ची घटना याद आ गई, वह काफी  रोमांचक मोटर साइकिल यात्रा थी जिसे  लिखने को मन किया, पर मै तो कोइ लेखक तो हूँ नहीं जो अच्छी और शुद्ध हिन्दी मे अपनी बात रख सकुं , फिर भी लिख रहा हूँ , भाषाजन्य गलतियों को सुधार लेगें।

बात जुन 1993 की है, मै कनीय विद्युत अभियता के पद पर तेनुघाट थर्मक पावर स्टेशन के केन्द्रीय भंडार कार्यालय मे पदस्थापित था। हमारे सहायक कार्यपालक अभियंता श्री पी के सिंह थे। हमारे विभाग में एक ट्रक थी,  उस ट्रक को परिवहन विभाग राँची के मोटर यान निरिक्षक ने रोड टैक्स बकाया के आधार पर पकड़ लिया था और उसे ओरमांझी थाने मे रखा था। ट्रक का नम्बर राँची से निबंधित था जबकि रोड टैक्स गिरिडिह परिवहन विभाग मे जमा हो रहा था। गिरिडिह परिवहन विभाग से नो ड्युज सर्टीफिकेट लाकर राँची परिवहन विभाग मे जमा कर ट्रक छुड़ाना था।

गिरीडिह से नो ड्युज सर्टीफिकेट आ गया था, रांची जाना था, 1993 मे ललपनिया से बाहर जाना एक दुरुह कार्य था। पहाड़ी, कच्छे और टुटे फुटे सड़क से रांची जाना कठिन था, अत: अपनी राजदुत मोटर साईकिल से जाना निश्चित हुआ। मैं, अपने बास श्री पी के सिंह साहब के साथ शुबह 7 बजे रांची के लिये निकला। उबड़ खाबड़ सड़क के साथ साथ एक पहाड़ी नदी (कटैल) मे एकाध फीट पानी मे पैदल ही बाइक पार कर करीब ग्यारह बजे के लगभग रांची पहुँच गया। 85 किलोमीटर की दूरी तय करने में लगभग चार घंटे का समय लग गया। एक विभाग से दुसरे विभाग मे दौड़ धूप करते चार बज गये, हमलोग के सामने दो विकल्प बचे थे रात रांची मे ही ठहरा जाये किसी होटल मे या भगवान का नाम लेकर ललपनिया के लिये निकल चला जाये। हमदोनों ने ललपनिया लौटने का विकल्प चुना। रांची से  हमलोग 4:15 शाम मे निकले। रामगढ करीब पौने छ: बजे पहुँचकर यह निश्चय किया कि कच्ची राह को छोड़ कर नेशनल हाइवे (पेटरवार) होकर चला जाये। आम का मौसम था, हमलोग 10किलो  लंगड़ा आम खरीद लिये। अंधेरा हो चला था। लगभग 10 किलोमीटर आगे आये थे तो मोटरसाइकिल की हेडलाइट चली गई… हेड्लाइट का डीपर फिलामेंट पहले से खराब था। रास्ते मे कोई मेकेनिक नही था। मैं पीछे आ रही गाड़ी की रोशनी मे बाईक चला रहा था। मेरे बास सिंह साहब ने मुझसे बाइक ले ली और वे चलाने लगे, मैं पीछे आम से भरे थैले लेकर बैठ गया। सिंह साहव  सड़क के किनारे धीरे धीरे बाइक चल रहे थे। नेशनल हाइवे होने के कारण काफी डंपर और गाड़ियाँ आ जा रही थी और बिना हेडलाईट के हमलोग काफी सावधानीपूर्वक आगे जा रहे थे। सड़क के किनारे एक व्यक्ति शौच के लिये बैठा था, अंधेरा होने के कारण हम लोग उसे देख नहीं पाये थे। सामने आने पर किसी तरह उसे बचाकर आगे बढे पर वह व्यक्ति डर कर जोर से चिल्लाया हमलोग भी डर गये थे। बाइक थोड़ा तेज चलाते हुये हमलोग आगे बढे। चितरपुर  के पास बिना लाइट की बाइक देखकर पुलिस की पेट्रोलिंग पार्टी ने बाइक रोका हमलोग अपना परिचय दिये और हेड लाईट खराब होने की बात बतायी,  थोड़ी दुर पर एक मेकेनिक का दुकान नजर आया, हम खुश हुये कि हेड्लाईट ठीक हो जायेगा पर मुशीवत इतनी जल्दी खत्म होने वाली थी नहीं, गैरेज मे कोई मेकेनिक नही था सिर्फ एक क्लीनर था, जो बाईक ठीक करने मे अपनी असमर्थता बता दिया। चौक पर स्ट्रीट लाइट की रोशनी मे मैने हेडलाईट का कभर खोला, चेक करने पर पता चला कि बल्ब ठीक था, सर्किट मे ही कोइ प्रोबलम्ब था। मैने स्वीच को बाइपास करते हुए बल्ब होल्डर का तार को सीधे अल्टरनेटर से आ रही तार से जोड़ दिया। बाइक स्टार्ट करते ही बल्ब जल गया। लगभग आठ बज  गये थे। माँ छिनमस्तिके का नाम लेकर आगे बढे, इस बार बाइक मैं चला रहा था।
करीब लगभग दस किलोमीटर के बाद अचानक साइलेन्सर बहुत आबाज करने लगा, बाइक रोक कर देखा तो सालेन्सर पाइप खुल कर सड़क पर पीछे गिरा था। अब क्या किया जाये। मैं अपने साथ एक पाजामा लेकर चला ताकि अगर रांची मे रुकना पडा तो काम आयेगी, पैजामे का नाडा निकाल कर सालेन्सर को कैरियर पर बाँध कर फट फट करता आगे बढा। अब मेरी बाईक पुरी तरह फटफटिया बन गयी था। कुछ दुरी पर ही गोला प्रखंड बाजार था। मेरे भाग्य से एक हार्डवेयर की दुकान खुली थी, वहाँ से प्लास्टिक की रस्सी खरीद कर साइलेन्सर को अच्छी तरह से बान्धकर गोला से आगे बढा। खराब सड़क होने के कारण हमलोग धीरे धीरे बाइक चला रहे थे। करीब दस बजे हमलोग पेटरवार पहुँच गये। एक एक चाय पीने की ईच्छा हो रही थी, पर कोई दुकान खुली नहीं होने के कारण हमलोग पेटरवार मे बिना रुके तेनुघाट की ओर मुड़ गये।  थोड़ी दुरी पर पेटरवार पेट्रोलिंग पुलिस ने हमे रोका, परिचय लेकर और थोड़ी देर बाद, जब कुछ और गाड़ियाँ जमा हो जाये तब एक साथ जाने की सलाह दिया। पर हमलोग उनकी सलाह को इग्नोर करते हुये हमलोग आगे बढ चले। बाइक सिंह साहब चला रहे थे, तेनुघाट से करीब 3-4 किलोमीटर पहले ही एक स्थान से तेनुघाट थर्मल प्लांट का बहुत ही सुन्दर दृष्य दिखायी दे रहा था, नयी नयी लाईटिंग हुई थी, मैने सिंह साहब को बोला कि सर लगता है, कितना बड़ा  प्लांट है, (1993 के दौरान इतना लोकल प्रोबलम्ब था कि कोई यह बोलने की स्तिथि मे  नही था कि प्लांट कब चालु हो पायेगा) सिंह साहब ने भी सिर घुमाकर देखने लगे, उसी समय मैने बोला कि सर आगे मोड़ है, इसी चक्कर मे बैलेंस बिगड़ गया और बाइक से हमलोग गिर गये, आम का दोनो थैला (5-5 किलो) बाइक के नीचे आकर बर्बाद हो गया। हल्का फुल्का चोट भी लगा था। बाइक उठायी तो एक नयी मुशिबत आ गई, बाइक का क्लच तार टुटा पड़ा था। सिंह साब ने सिंचाई विभाग के गेस्ट हाउस मे ही रात रुक जाने का सलाह दिया। पर मैं रुकने को तैयार नहीं था वैसे भी करीब 11 बजे रात गेस्ट हाउस का पर्मीसन कौन देता। जहाँ बाइक गिरा था हल्का ढलान था, न्युट्र्ल मे बाइक को आगे बढाया और सेकेंड गियर मे बाइक  डालकर स्टार्ट किया और बिना क्लच तार के आगे बढा। कुछ ही दिन पहले तेनुघाट नहर मे बम विस्फोट हुआ था इस कारण डैम के उपर से सभी वाहनों का चलना बंद कर दिया गया था। काउजवे होकर जाना था, मेरे आगे कई कोल डंपर चल रहे थे। काउजवे पुल के बाद चढाई थी, दो डंपर एक दुसरे से पैरेलल चल रहे थे, मुझे बाइक रोकनी पड़ी। अब चढाई पर बाइक बिना क्लच वायर कैसे स्टार्ट हो। मैने सिंह साहब को बाइक ठेलकर स्टार्ट करके तेजी से उछलकर बैठने को बोला जो कि काफी कठिन था, मैने बाइक को घुमाकर ढलान मे डाला और उसी तरह सेकेंड गियर के डालकर स्टार्ट किया।
सिंह साहब ने फिर हमे साडम मे ही श्री प्रदीप कुमार जैन जो कि हमारे प्लांट के एक बड़े ठिकेदार हैं, के आबास पर ही रुक जाने को कहा। उन दिनों तुलबुल के आगे और पहाडी पर कुछ लुट पाट होती थी, पर मैने फिर कहा जब हमलोग साड़म तक आ गये तो और 12 किलोमीटर तो चले जायेगें क़्वार्टर पहुँच कर ही आराम करेगें।
शायद एक प्रोबलम्ब और बाकी था, तुलबुल के आगे पहाड़ी पर चलते हुये मै सोचा कि सेकेंड गियर में बाइक चढ जायेगी परन्तु स्पीड टुट जाने के कारण बाइक सेकेंड गियर के स्पीड गिरता जा रहा था सिंह साहब ने मुझे एक नम्बर गियर मे बाइक डालने को बोला, फुल एक्सिलेटर मे मैने गियर बदला , लो बल्ब का एकलौता फिलामेंट भी चला गया। धन्यवाद इश्वर को चांदनी निखर आयी थी। बिना लाइट की फटफटिया (बिना सालेन्सर पाइप) बिना क्लच तार के करीब 12 बजे रात अपने क्वार्टर के पास पहुँचा, बिजली थी नही, लोग जून माह की गर्मी मे बाहर सड़क पर घुम रहे थे, अपने आवास के अन्दर पहुँच कर अपने भगवान को, धन्यवाद किया। 
यह थी मेरी मोटर साइकिल की रोमांचक यात्रा। अभी सिंह साहब CHP मे कार्यपालक अभियंता के पद पर पदस्थापित हैं और मैं सहायक कार्यपालक अभियंता, उसी केन्द्रीय भंडार मे और ट्रक खराब हालत मे पिछले दस साल से गैरेज मे पड़ा है।
धन्यबाद                             

Saturday, September 28, 2013

बैंको से प्राप्त व्याज पर आयकर असंगत और अमानवीय है।

आज  एक नौकरीपेशा व्यक्ति कितने प्रकार का टैक्स देता है। सबसे पहले वह मिलने वाले वेतन पर आयकर और पेशाकर देता है। आज की महगाई मे एक सामान्य नौकरी करने वाला व्यक्ति  वेतन से आयकर और प्रोफेसनल टैक्स की कटौती के बाद, दिन प्रतिदिन का खर्च, बच्चों की शिक्षाघर किराया, होउसिंग लोन के रिपेमेंट  आदि अति आवश्यक खर्चों के बाद कितना पैसा बचा पाता है। विशेषकर प्राईवेट मैनुफैक्चरिंग/इन्फ्रास्ट्रचर कम्पनियों मे मिडिल लेवल मे कार्य करने वाला व्यक्ति काफी मसक्कत के बाद, काफी आवश्यक खर्चों मे कटौती करने के बाद भविष्य के लिये कुछ पैसा बचा पाता है।
इस बचत को रखने के लिए हमारे पास कितना आप्सन है……
बैंक मे सावधि जमा (Fixed Deposit)
कम्पनियों के सावधि जमा
स्थानीय स्तर पर कार्य करने वाले चिटफंड कम्पनियों के जमा स्कीम
शेयर मे निवेश
म्युचुयल फंड मे निवेश
कम्पनियों के डिवेंचर

उपरोक्त सभी निवेश आप्सनों मे सबसे सरल और सुरक्षित बैंक का सावधि जमा है जिसमे एक बार करार होने पर , उतना पैसा बैंक निश्चित तौर पर मिलता है। इस निवेश पर निश्चित व्याज मिलता है हालांकि यह व्याज दर बाजार के मुल्यवृद्धि दर (Inflation Rate)  के आसपास या इससे कुछ कम ही होता है। यानी आपका पैसा यहाँ सिर्फ सुरक्षित रहेगा क्यों कि 3-5 वर्ष के वाद, आपके जमा रुपये के परिपक्वता मुल्य, मुल्यवृद्धि दर (Inflation Rate)   के समायोजन के बाद , वास्त्विक मुल्य से भी कम होगा। अभी भारत में मुल्यवृद्धि दर 11% से भी अधिक है, जब कि बैकों का अधिकतम व्याज दर 8-9% है, इसका आशय है कि 1000 रुपये जब हम बैक में जमा करते हैं, तो उसका मुल्य 8-9% वार्षिक की दर से बढेगा जब कि उसका मुल्य 11% की दर से ह्रास होगा, इस तरह इस 1000 रुपये का वास्त्विक मुल्य इसके आरंभिक मुल्य 1000 रुपये से भी कम हो जायेगा। अब जो आयकर के दायरे मे आते हैं उन्हें इस 8-9% के व्याज पर 10% से 30% तक आयकर भी कटेगा तब इसका वास्तविक व्याज दर मात्र  6-7% ही रह जाती है।

अब आइये साधारण बचत खाते कि बात करें, मध्यम आय और निम्न आय वर्ग के ज्यादातर लोग अपने पैसे को बचत खाते मे रखते  है ताकि आवश्यक होने पर आसानी से/ए टी एम से पैसे निकाल सके। वैसे भी बचत खाते मे न्युनतम राशि रखना अनिवार्य है। इस बचत खाते पर मात्र 4% वार्षिक व्याज दिया जाता है, इस अत्यन्त निम्न बचत आय पर भी आयकर देय होता है। यदि 20% आयकर मान लें तो वास्तविक आय मात्र 3,2% व्याज आय रह जाता है। आज की मुद्रास्फिति जब 11% है इस हालत आपके पैसे का मुल्य ह्रास 11-3,2=7,8% हुआ। जब हमारे बचत पर आय हुई ही नही तो आयकर कैसा।

आम वेतनभोगी आदमी अपने वेतन  पर आयकर , पेशाकर देने के बाद प्राप्त राशि से घर किराया, घर खर्च, बच्चों कि शिक्षा , मेडिकल आदि को काट कर  कितना बचा पता है,  उस बचत जो कि आयकर , पेशाकर देने के बाद बचाता है भविष्य के लिये उसपर प्राप्त व्याज पर टैक्स लेना न सिर्फ अमानवीय है, असंगत है।   

इसके विपरीत एक उदाहरण लें : एक उच्च आय वर्ग या उच्च मध्यम आयवर्ग का एक व्यक्ति अपने सरप्लस पैसे को म्युचुअल फंड या शेयर मे पैसा जमा करता है। मान लें एक व्यक्ति शेयर बाजार में 10000 रुपये जमा करता है, 5 वर्ष के वाद उसकी जमा राशि का मुल्य 3 गुना बढ जाता है। इस  तरह उसे 20000 रुपये का लाभ हुआ, इस आय पर कोई आयकर नहीं लगता क्योंकि यह लम्बी अवधि की पुजीं लाभ आय (Long  term capital gain ) की श्रेणी मे आयेगा। उच्च आय और उच्च मध्यम आय वर्ग के लोग आजकल रियल इस्टेट और शेयर/ म्युचुअल फंडो मे  निवेश करते है, ताकि उनकी कमाई पुरी तरह आय कर की नजर से बची रहे।  शेयर/ म्युचुअल फंडो से प्राप्त लाभांश पुरी तरह आयकर से मुक्त है। यह भी कहा जाता है कि म्युचुअल फंडो  का वार्षिक वृद्धि दर करीब 10%-15% की होती है। इस तरह बड़े और उच्च आय वर्ग के लोग अपने निवेश पर कमाई को आयकर की नजर से बचा लेते है और निम्न आय वर्ग/निम्न मध्यम आय वर्ग के लोग की छोटी व्याज आय जो कि वास्तव मे किसी भी तरह से आय नहीं माना जा सकता (मुद्रास्फिति के समायोजन के बाद) पर आय कर विभाग की टेढी नजर रहती है।  बैंक खुद स्त्रोत पर आयकर काट लेती है।


आप कह सकते है कि निम्न मध्यम आय वाले शेयर/ म्युचुअल फंडो मे क्यों नहींख़ निवेश करते है। शेयर/ म्युचुअल फंडो मे निवेश साधारण तरीके से नहीं किया जा सकता है और न ही आस्सानी से निकाला जा सकता है। इस कारण शेयर/ म्युचुअल फंडो मे निवेश मात्र 2% से 5% लोग ही कर पाते है।  आज म्युचुअल फंड के कुल जमा का 80-90% बड़े व्यापारिक घरानों का पैसा है और मात्र 10% से 20% राशि ही आम निवेशको का हैं।

आजकल उच्च आय वर्ग के लोग बैक मे अपना पैसा न रख कर , रियल एस्टेट/ जमीन व्यापार/सोना खरीद मे अपना पैसा लगा रहे है। यदि  आम व्यक्ति के लिये बैंक व्याज से प्राप्त आय पर आयकर जो कि पुरे आयकर का मात्र एक नाममात्र की राशि है को कर मुक्त कर दिया जाये तो बैकों के जमा राशि मे अप्रत्याशित रुप से कई गुणा बढ जायेगी जो अनंतोगत्वा देश के विकाश मे ही काम आयेगा। आयकर के डर से लोग अपना पैसा बैंक के ही लाकर मे छिपा कर रखते है, आज बैंक के ही लाकरो के लाखों करोड़ रुपये डेड असेट के रुप मे पड़ा है, उसका कुछ प्रतिशत  भी बाहर निकल सके तो बड़ी कामयावी होगी। इस तरह मात्र कुछ  बैंक से प्राप्त व्याज को आयकर मुक्त  कर इसके करोड़ो लोगो को लाभ पहुँचाया जा सकता है, और इसका प्रत्यक्ष लाभ देश को मिलेगा, लाकरों मे जमा ब्लैक मनी का बड़ा अंश बाहर आ जायेगा।


इस तरह हम मानते  है कि किसी आम आदमी के  बैंक मे जमा राशि के उपर व्याज आय पर आयकर लगना एक बहुत ही  असंगत  और अमानवीय लगता  है। आयकर किसी आय पर लगता है, जबकि बैंक मे जमाराशि पर प्राप्त व्याज तो आय की श्रेणी मे रखना अप्रासंगिक लगता है क्यों कि प्राप्त व्याजदर, मुल्यवृद्धि दर (Inflation Rate)  से काफी कम है, इस तरह  मुल्यवृद्धि दर (Inflation Rate) को समायोजित करने पर जमाराशि के मुल्य मे वास्तविक रुप से ह्रास ही हुआ है।

बैक जमा कर मिलने वाला व्याज पुरी तरह आय कर मुक्त होना चाहिये। हाँ  यदि कोई कम्पनी/कारपोरेट घरानें अपना पैसा बैंक मे रखती है तो उस पर मिलने वाले व्याज पर टैक्स लिया जाना चाहिये। 

Tuesday, February 5, 2013

दवाइयां खरीदने से पहले उसका विकलपप जरुर देखें।



अक्सर हमलोग डाक्टर साहव के द्वारा लिखी गयी (Prescribed) दवाओं को या Prescription मे लिखी दवाओं को, बिना किसी भी शंका  के किसी केमिस्ट के दुकान से जाकर ले आते है। 

मैं भी यही करता हूँ, डाक्टर के द्वारा लिखी गयी दवाओं को बिना कोई समझौता, सीधे किसी भी केमिस्ट के दुकान से ले आता हूं  । अगर कोई दवा किसी केमिस्ट के यहाँ नहीं मिलती है तो हम उस विशेष दवा की खोज मे केमिस्ट दर केमिस्ट भटकते है।

हमलोग कभी यह जानने की कोशिश ही नही करते कि डाक्टर  साहब ने जो ब्रान्डेड दवा लिखी है उसी composition की दवा अनेको कम्पनियां बनाती है। किसी एक कम्पनी की दवा नही मिली तो उसी क्म्पोजिसन की दवा दुसरे कम्पनी की ले लें,  यह हम सोचते भी नहीं हैं।
कोई भी डाक्टर सभी कम्पनियों की दवाओं के बारे नहीं जान सकता, वे ज्यादातर काफी विख्यात या बड़ी कम्पनियों की दवाये लिखते हैं या उस कम्पनी की जिसके मेडिकल रिप्रेजेंटिटिव उन्हें काफी बड़े बड़े उपहार या बड़ी कमीसन देते है। और हम डाक्टर साहब की लिखी ब्राण्डेड दवा ही खरीदने की जिद मे पड़ जाते है। हो सकता है वह Particular  दवा, डाक्टर साहब के दारा सुझाये गये किसी खास दवा दुकान से ही मिलेगी।

कुछ दिन पहले मुझे दाँत दर्द हुआ था इसके लिये डाक्टर ने मुझे SUMO (500+100)  दिया था। इस दवा मे 500मिलीग्राम paracetamol और 100मिलीग्राम Nimesulide होता है। केमिस्ट मेरे जानपहचान के थे, उन्होने मुझसे कहा कि क्या यही दवा लेनी है या इस कम्पोजिसन का कोई दुसरी दवा भी चलेगी। उन्होने यह भी बताया कि, एक आम दवा है और इस कम्पोजिसन का दर्जनों दवाईयाँ, जो कि SUMO से न सिर्फ काफी सस्ती है वरन गुनवत्ता मे किसी तरह भी कमतर नही , उपलब्ध है।  SUMO  जहाँ Rs43.50 मे दस टैबलेट आती है, वहीं कुछ कम्पनियाँ इस कम्पोजिसन की दवा मात्र मात्र 4 से 10 रुपये से लेकर उपलब्ध करा रही है।   और मुझे उसने Mankind Pharma का Mahagesic  दवा दे दिया जिसका मुल्य 17/- रुपये लिया।

मुझे कुछ और उत्सुकता हुई। मैने कुछ और दवाइयो के बारे मे भी जानने की कोशिश किया , अपने मित्र केमिस्ट से कुछ विशेष जानकारी हासिल किया। उच्च रक्तचाप की एक बहुत ही आम दवा है- Amlodipin 5mg. यह दवा भी विभिन्न नामो से 50 पैसे से लेकर 8.50 रुपये प्रति टेबलेट मार्केट मे उपलब्ध है। डाक्टर साहब के द्वारा लिखी जाने वाली विभिन्न एन्टीवायोटिक्स के लिए yभी यही बात आती है। Ciprofloxacin-500mg एक बहुत ही आम एन्टीवायोटिक्स है ,    यह दवा भी विभिन्न ब्राण्डेड नामों से बाजार मे  में एक रुपये से आठ रुपये प्रति टैबलेट मे उपलब्ध है।  

क्या हम डाक्टर से यह पुछने का साहस रखते है, कि उनके द्वारा लिखी दवा से सस्ती दवा लिखें, नही ना? इसी कसमकस और दवा बाजार मे मची इस अंधेरगर्दी से आम जनता को बचाने के लिए विनोद कुमार मेमोरियल ट्रस्ट ने एक website medguideindia.com  आम जनता के लिए लांच किया है। इसमे दाक्टर के द्वारा लिखी दवा के नाम को सर्च कर, उस दवा से जुड़ी सारी जानकारी यथा composition, इसकी मात्रा, साईड इफेक्ट प्राप्त कर सकते है। इसके साथ ही इस कम्पोजिसन की अन्य कम्पनियों की दवाओं का लिस्ट और उसके बाजार मुल्य सभी मिल जायेगें। यदि कोई डाक्टर किसी अन्जान कम्पनी की दवा लिखते है तो उनसे उस दवा का क्म्पोजिसन लिखने के लिए हम कह सकते है, ताकि उस कम्पोजिसन की सस्ती दवा हम ले सकें।

कुछ दवा कम्पनियाँ डाक्टर को किसी खास दवा के लिए 20 से 30% कमीसन देती है और वह दवा सिर्फ डाक्टर के द्वारा बताये केमिस्ट के दुकान से ही मिलेगी। हो सकता यह दवा इस वेवसाईट मे भी नही मिलेगी क्योंकि छोटी छोटी कम्पनियों इसमे रजिस्टर्ड नहीं है। डाक्टर साहब भी दवा की क्म्पोजिसन नही बतलाना चाहेगें, तब आपके पास सिर्फ वही दवा लेने के सिवाय कोई और विकल्प नही बचेगा, इस स्थिति मे आप उस खास दवा की थोड़ी मात्रा लें, उसकी  composition जान लें और फिर उस  composition की दवा बाज़ार मे खोजें, केमिस्टों के दुकान मे CIMS/MIMS/Drugs Today कि प्रति से उस दवा के विकल्पों की तलाश कर सकते है या फिर स वेवसाईट मे उस दवा के विकल्पों की तलाश कर सकते है।          

आजकल किसी भी प्रोफेसन मे नैतिकता नाम की चीज बहुत कम बची है। बहुत कम ही  डाक्टर है जो मरीज को मरीज समझ कर सेवा भाव अपनाते है। अधिकांश डाक्टर मरीज को एक ग्राहक/Client समझते है, उसकी हैसियत को आंकते है, फिर उससे हो सके वसुल करते है।