गिलोय एक साधारण सी बेल जो बिना किसी मेहनत और जमीन के कहीं भी उगाया गा सकता है अपने आप में असीमित गुण रखता है। लगभग सभी बिमारियों मे बिना किसी शंका के इसका व्यवहार आप कर सकते है। आयुर्वेद में इसे अमृता भी कहते है। शायद इसका अमृत जैसा गुण के कारण ही अमृता नाम दिया गया है।
आमलोग इसे गमलो मे उगा सकते है। हमलोग मनी प्लांट की बेल, घरों मे गमलो मे बहुत मेहनत से उगाते हैं, इससे मनी आता है की नहीं पता नहीं परन्तु यदि हम गमलों में मनी प्लांट के स्थान पर गिलोय की बेल लगायें इससे डाक्टरों और दवाईयों पर होने बाले मनी की बचत अवश्य होगी और एलोपैथिक दवाओं के होने वाले विपरीत प्रभावों से भी बचेगें।
आमलोग इसे गमलो मे उगा सकते है। हमलोग मनी प्लांट की बेल, घरों मे गमलो मे बहुत मेहनत से उगाते हैं, इससे मनी आता है की नहीं पता नहीं परन्तु यदि हम गमलों में मनी प्लांट के स्थान पर गिलोय की बेल लगायें इससे डाक्टरों और दवाईयों पर होने बाले मनी की बचत अवश्य होगी और एलोपैथिक दवाओं के होने वाले विपरीत प्रभावों से भी बचेगें।
पौराणिक कथानुसार समुद्र मंथन के समय अमृत कलश लेकर भागते समय असुरों से जहां-जहां पृथ्वी पर उसकी बूंदें गिरी वहां-वहां आरोहिणी लता गिलोय पैदा हो गई। इसे अमृता, गुडूची, मधुपर्जी आदि नामों से भी जाना जाता है। योगाचार्य तरसेम लाल रतन व एमएल शर्मा कहते हैं कि कड़वे स्वाद वाली यह वनस्पति पूरे भारत वर्ष में पाई जाती है तथा आचार्य चरक ने इसे मुख्यत: वातहर माना है, जबकि कई वेद्यगण इसे त्रिदोषहर, रक्त शोधक, प्रतिसंक्रामक, ज्वरघ्न मानते हैं। गिलोय सभी प्रकार के ज्वर को समूल नष्ट करती है। यह ज्वर का वेग कम कर खांसी को मिटाती है। टायफायड जैसे जीर्ण मौलिक ज्वर को मिटाकर रोगी में शक्ति का संचार भी करती है। पतंजलि योगपीठ अध्यापक सेल के पंजाब प्रदेशाध्यक्ष आरएस राणा ने बताया है कि मलेरिया और कालाजार जैसे रोगों की यह उत्तम औषधि है। इसे 'भारतीय कुनीन' भी कहा जाता है। गिलोय ज्वर कुष्ठ एलिफेंटिएसिस की श्रेष्ठ औषधि है। विषम ज्वर तथा यकृत की कार्यहीनता में चमत्कारी लाभ देकर यह रोगी को स्वस्थ करती है। बढ़ी हुई तिल्ली व सिफलिस की यह एक मात्र सिद्ध औषधि है। पीलिया रोग में गिलोय पत्र का चूर्ण अचूक औषधि है। योगाचार्य रोजी शर्मा व सुरेंद्र शर्मा के अनुसार गिलोय के प्रयोग से एलर्जी व त्वचा के सभी विकारों, छाइया, झुर्रियां और कुष्ठ रोग से राहत मिलती है। शरीर में इंसुलिन की उत्पत्ति की क्षमता को बढ़ाती है, मधुमेह का उपचार करती है। यूनानी चिकित्सा पद्धति में गिलोय को ज्वर नाशक, कुष्ठ सिफलिस तथा पेट कृमि नाशक के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। होम्योपैथी में ज्वर, कोढ़, सुजाक व पेशाब संक्रमण हेतु गिलोय का मदर टिंकचर तीन व छ: एक्स की पोटैंसी में प्रयुक्त किया जाता है। गिलोय के निरंतर प्रयोग से सभी प्रकार के फ्लू, बुखार, हृदय की दुर्बलता, निम्न रक्तचाप, रक्त विकार, शुक्राणुहीनता, दौर्बल्य व चर्म रोगों से बचा जा सकता है। गिलोय और गेहूं के ज्वारे के जूस के साथ सात-सात पत्ते तुलसी और नीम के खाने से कैंसर के उपचार में आशातीत लाभ होता है। गिलोय और पुनर्नवा का प्रयोग मिर्गी का उत्तम उपचार है। दीर्घायु प्रदान करने वाली इस अमूल्य वनस्पति को हर घर में लगाना चाहिए।
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