Tuesday, December 3, 2013

मेरी एक रोमांचक मोटरसाइकिल यात्रा।

आज बैठे बैठे एक सच्ची घटना याद आ गई, वह काफी  रोमांचक मोटर साइकिल यात्रा थी जिसे  लिखने को मन किया, पर मै तो कोइ लेखक तो हूँ नहीं जो अच्छी और शुद्ध हिन्दी मे अपनी बात रख सकुं , फिर भी लिख रहा हूँ , भाषाजन्य गलतियों को सुधार लेगें।

बात जुन 1993 की है, मै कनीय विद्युत अभियता के पद पर तेनुघाट थर्मक पावर स्टेशन के केन्द्रीय भंडार कार्यालय मे पदस्थापित था। हमारे सहायक कार्यपालक अभियंता श्री पी के सिंह थे। हमारे विभाग में एक ट्रक थी,  उस ट्रक को परिवहन विभाग राँची के मोटर यान निरिक्षक ने रोड टैक्स बकाया के आधार पर पकड़ लिया था और उसे ओरमांझी थाने मे रखा था। ट्रक का नम्बर राँची से निबंधित था जबकि रोड टैक्स गिरिडिह परिवहन विभाग मे जमा हो रहा था। गिरिडिह परिवहन विभाग से नो ड्युज सर्टीफिकेट लाकर राँची परिवहन विभाग मे जमा कर ट्रक छुड़ाना था।

गिरीडिह से नो ड्युज सर्टीफिकेट आ गया था, रांची जाना था, 1993 मे ललपनिया से बाहर जाना एक दुरुह कार्य था। पहाड़ी, कच्छे और टुटे फुटे सड़क से रांची जाना कठिन था, अत: अपनी राजदुत मोटर साईकिल से जाना निश्चित हुआ। मैं, अपने बास श्री पी के सिंह साहब के साथ शुबह 7 बजे रांची के लिये निकला। उबड़ खाबड़ सड़क के साथ साथ एक पहाड़ी नदी (कटैल) मे एकाध फीट पानी मे पैदल ही बाइक पार कर करीब ग्यारह बजे के लगभग रांची पहुँच गया। 85 किलोमीटर की दूरी तय करने में लगभग चार घंटे का समय लग गया। एक विभाग से दुसरे विभाग मे दौड़ धूप करते चार बज गये, हमलोग के सामने दो विकल्प बचे थे रात रांची मे ही ठहरा जाये किसी होटल मे या भगवान का नाम लेकर ललपनिया के लिये निकल चला जाये। हमदोनों ने ललपनिया लौटने का विकल्प चुना। रांची से  हमलोग 4:15 शाम मे निकले। रामगढ करीब पौने छ: बजे पहुँचकर यह निश्चय किया कि कच्ची राह को छोड़ कर नेशनल हाइवे (पेटरवार) होकर चला जाये। आम का मौसम था, हमलोग 10किलो  लंगड़ा आम खरीद लिये। अंधेरा हो चला था। लगभग 10 किलोमीटर आगे आये थे तो मोटरसाइकिल की हेडलाइट चली गई… हेड्लाइट का डीपर फिलामेंट पहले से खराब था। रास्ते मे कोई मेकेनिक नही था। मैं पीछे आ रही गाड़ी की रोशनी मे बाईक चला रहा था। मेरे बास सिंह साहब ने मुझसे बाइक ले ली और वे चलाने लगे, मैं पीछे आम से भरे थैले लेकर बैठ गया। सिंह साहव  सड़क के किनारे धीरे धीरे बाइक चल रहे थे। नेशनल हाइवे होने के कारण काफी डंपर और गाड़ियाँ आ जा रही थी और बिना हेडलाईट के हमलोग काफी सावधानीपूर्वक आगे जा रहे थे। सड़क के किनारे एक व्यक्ति शौच के लिये बैठा था, अंधेरा होने के कारण हम लोग उसे देख नहीं पाये थे। सामने आने पर किसी तरह उसे बचाकर आगे बढे पर वह व्यक्ति डर कर जोर से चिल्लाया हमलोग भी डर गये थे। बाइक थोड़ा तेज चलाते हुये हमलोग आगे बढे। चितरपुर  के पास बिना लाइट की बाइक देखकर पुलिस की पेट्रोलिंग पार्टी ने बाइक रोका हमलोग अपना परिचय दिये और हेड लाईट खराब होने की बात बतायी,  थोड़ी दुर पर एक मेकेनिक का दुकान नजर आया, हम खुश हुये कि हेड्लाईट ठीक हो जायेगा पर मुशीवत इतनी जल्दी खत्म होने वाली थी नहीं, गैरेज मे कोई मेकेनिक नही था सिर्फ एक क्लीनर था, जो बाईक ठीक करने मे अपनी असमर्थता बता दिया। चौक पर स्ट्रीट लाइट की रोशनी मे मैने हेडलाईट का कभर खोला, चेक करने पर पता चला कि बल्ब ठीक था, सर्किट मे ही कोइ प्रोबलम्ब था। मैने स्वीच को बाइपास करते हुए बल्ब होल्डर का तार को सीधे अल्टरनेटर से आ रही तार से जोड़ दिया। बाइक स्टार्ट करते ही बल्ब जल गया। लगभग आठ बज  गये थे। माँ छिनमस्तिके का नाम लेकर आगे बढे, इस बार बाइक मैं चला रहा था।
करीब लगभग दस किलोमीटर के बाद अचानक साइलेन्सर बहुत आबाज करने लगा, बाइक रोक कर देखा तो सालेन्सर पाइप खुल कर सड़क पर पीछे गिरा था। अब क्या किया जाये। मैं अपने साथ एक पाजामा लेकर चला ताकि अगर रांची मे रुकना पडा तो काम आयेगी, पैजामे का नाडा निकाल कर सालेन्सर को कैरियर पर बाँध कर फट फट करता आगे बढा। अब मेरी बाईक पुरी तरह फटफटिया बन गयी था। कुछ दुरी पर ही गोला प्रखंड बाजार था। मेरे भाग्य से एक हार्डवेयर की दुकान खुली थी, वहाँ से प्लास्टिक की रस्सी खरीद कर साइलेन्सर को अच्छी तरह से बान्धकर गोला से आगे बढा। खराब सड़क होने के कारण हमलोग धीरे धीरे बाइक चला रहे थे। करीब दस बजे हमलोग पेटरवार पहुँच गये। एक एक चाय पीने की ईच्छा हो रही थी, पर कोई दुकान खुली नहीं होने के कारण हमलोग पेटरवार मे बिना रुके तेनुघाट की ओर मुड़ गये।  थोड़ी दुरी पर पेटरवार पेट्रोलिंग पुलिस ने हमे रोका, परिचय लेकर और थोड़ी देर बाद, जब कुछ और गाड़ियाँ जमा हो जाये तब एक साथ जाने की सलाह दिया। पर हमलोग उनकी सलाह को इग्नोर करते हुये हमलोग आगे बढ चले। बाइक सिंह साहब चला रहे थे, तेनुघाट से करीब 3-4 किलोमीटर पहले ही एक स्थान से तेनुघाट थर्मल प्लांट का बहुत ही सुन्दर दृष्य दिखायी दे रहा था, नयी नयी लाईटिंग हुई थी, मैने सिंह साहब को बोला कि सर लगता है, कितना बड़ा  प्लांट है, (1993 के दौरान इतना लोकल प्रोबलम्ब था कि कोई यह बोलने की स्तिथि मे  नही था कि प्लांट कब चालु हो पायेगा) सिंह साहब ने भी सिर घुमाकर देखने लगे, उसी समय मैने बोला कि सर आगे मोड़ है, इसी चक्कर मे बैलेंस बिगड़ गया और बाइक से हमलोग गिर गये, आम का दोनो थैला (5-5 किलो) बाइक के नीचे आकर बर्बाद हो गया। हल्का फुल्का चोट भी लगा था। बाइक उठायी तो एक नयी मुशिबत आ गई, बाइक का क्लच तार टुटा पड़ा था। सिंह साब ने सिंचाई विभाग के गेस्ट हाउस मे ही रात रुक जाने का सलाह दिया। पर मैं रुकने को तैयार नहीं था वैसे भी करीब 11 बजे रात गेस्ट हाउस का पर्मीसन कौन देता। जहाँ बाइक गिरा था हल्का ढलान था, न्युट्र्ल मे बाइक को आगे बढाया और सेकेंड गियर मे बाइक  डालकर स्टार्ट किया और बिना क्लच तार के आगे बढा। कुछ ही दिन पहले तेनुघाट नहर मे बम विस्फोट हुआ था इस कारण डैम के उपर से सभी वाहनों का चलना बंद कर दिया गया था। काउजवे होकर जाना था, मेरे आगे कई कोल डंपर चल रहे थे। काउजवे पुल के बाद चढाई थी, दो डंपर एक दुसरे से पैरेलल चल रहे थे, मुझे बाइक रोकनी पड़ी। अब चढाई पर बाइक बिना क्लच वायर कैसे स्टार्ट हो। मैने सिंह साहब को बाइक ठेलकर स्टार्ट करके तेजी से उछलकर बैठने को बोला जो कि काफी कठिन था, मैने बाइक को घुमाकर ढलान मे डाला और उसी तरह सेकेंड गियर के डालकर स्टार्ट किया।
सिंह साहब ने फिर हमे साडम मे ही श्री प्रदीप कुमार जैन जो कि हमारे प्लांट के एक बड़े ठिकेदार हैं, के आबास पर ही रुक जाने को कहा। उन दिनों तुलबुल के आगे और पहाडी पर कुछ लुट पाट होती थी, पर मैने फिर कहा जब हमलोग साड़म तक आ गये तो और 12 किलोमीटर तो चले जायेगें क़्वार्टर पहुँच कर ही आराम करेगें।
शायद एक प्रोबलम्ब और बाकी था, तुलबुल के आगे पहाड़ी पर चलते हुये मै सोचा कि सेकेंड गियर में बाइक चढ जायेगी परन्तु स्पीड टुट जाने के कारण बाइक सेकेंड गियर के स्पीड गिरता जा रहा था सिंह साहब ने मुझे एक नम्बर गियर मे बाइक डालने को बोला, फुल एक्सिलेटर मे मैने गियर बदला , लो बल्ब का एकलौता फिलामेंट भी चला गया। धन्यवाद इश्वर को चांदनी निखर आयी थी। बिना लाइट की फटफटिया (बिना सालेन्सर पाइप) बिना क्लच तार के करीब 12 बजे रात अपने क्वार्टर के पास पहुँचा, बिजली थी नही, लोग जून माह की गर्मी मे बाहर सड़क पर घुम रहे थे, अपने आवास के अन्दर पहुँच कर अपने भगवान को, धन्यवाद किया। 
यह थी मेरी मोटर साइकिल की रोमांचक यात्रा। अभी सिंह साहब CHP मे कार्यपालक अभियंता के पद पर पदस्थापित हैं और मैं सहायक कार्यपालक अभियंता, उसी केन्द्रीय भंडार मे और ट्रक खराब हालत मे पिछले दस साल से गैरेज मे पड़ा है।
धन्यबाद                             

No comments:

Post a Comment